लता मंगेशकर की आवाज दशकों तक दुनिया को मंत्रमुग्ध करती रही है। यह आवाज सदियो तक जमाने के साथ रहेगी। फिल्म संगीत के जिस दौर को गोल्डन एरा कहा गया उस दौर का एक स्वर्णिम नाम लता मंगेशकर है।
चालीस के दशक में महल फिल्म के गीत आएगा आने वाला गाकर जिस गायिका ने अपनी विलक्षण प्रतिभा का अहसास करा दिया था ,उसने नई सदी में भी गीत गाए। केवल भारत ही नहीं दुनिया ने भी कहा कि लता मंगेशकर अनमोल गायिका है। लता मंगेशकर ने फिल्म जगत में उस दौर में प्रवेश किया था जब फिल्म संगीत में नूरजहां अमीर बाई कर्नाटकी, शम्शाद बेगम की आवाज गूंज रही थी। उनके तरानों पर जमाना झूमता था। ऐसे में लताजी के लिए अपनी जगह बनाना इतना आसान भी नहीं था। और शुरू में ऐसा उनके साथ हुआ भी। प्रसिद्ध संगीतकार गुलाम हैदर ने उन्हें एक फिल्म में गवाना चाहा था तो उस फिल्म के संगीतकार ने कहा था कि लता की आवाज फिल्म के लिए नहीं है। लेकिन जब मधुबाला के लिए फिल्म महल में लता मंगेशकर ने पहला गाना आएगा आने वाला गाया तो फिल्म संगीत के मतवाले झूम उठे । इसी गीत के बदौलत फिल्म जगत ने जान लिया था कि लताजी बहुत दूर तक जाएंगी। यह अहसास सबको हो गया था कि यह आवाज बहुत दूर तक जाएगी।
इसी साल चार बड़ी फिल्में रिलीज हुई । महल अंदाज दुलारी बरसात। हर तरफ लताजी के सुरीली आवाज की चर्चा थी। बरसात में हमसे मिले तुम, हवा में उड़ता जाए मोरा लाल दुपट्टा मलमल का जैसे गीतों से समा बध चुका था। फिर लताजी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बरसात, कोहिनूर बेजू बावरा, आवारा मुगले आजम मधुमति संगम बाबी राम तेरी , जिस देश में गंगा बहती है, आम्रपाली, गाइड, अनपढ़, शोर, नागिन मेरा गांव मेरा देश, जैसी फिल्मों के तराने अगर बीते में गूंजे तो नब्बे के दशक में भी तेरे हाथों में नौ नौ चूडियां है दिल दिवाना माने ना जैसे गीत उतनी ही तनम्यता से सुने गए। ओ बसंती पवन पागल जैसे शास्त्रीय गीत हो या आ अब लौट चले का मधुर आलाप आजा रे परदेशी गीत की पुकार हो या फिर आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे जैसे गीत की मधुरता , अजीब दास्ता हैं ये जैसी लय या फिर दिल हूम हूम करे जैसे गीत का विरह लताजी ने हर तरह के गीत को महकाया। लताजी की गायकी का कमाल था जब प्यार किया तो डरना क्या जैसे गीत पर जमाना थिरक उठा।
लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को इंदोर में हुआ था। उनकी परवरिश महाराष्ट्र में हुई। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर मराठी थियेटर के जाने माने कलाकार और गायक थे। 13 वर्ष की आयु में पिता का साया सिर से उठा तो भाई बहनों में सबसे बड़ी लता मंगेशकर पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई.
लताजी अपने पिता के साथ थियेटर में गीत गाती थीं और शास्त्रीय संगीत का रियाज करती थीं। उन्होंने शुरू में कुछ फिल्में भी की । लेकिन बाद में फिल्म गायन को ही अपनी विधा बना लिया। लेकिन अपनी एक जगह बनाने के लिए उन्हें बहुत रियाज करना पड़ा। लता मंगेशकर ने सात दशख में तीस से ज्यादा भाषाओं में तीस हजार से ज्यादा गीत गाए हैं। उनका गाया एक एक गीत मन को छूता है। सारी दुनिया उनकी गायकी की कद्रदान है।
हर अभिनेंत्री की मंशा होती थी कि जब वह पर्दे पर गाती हुए नजर आईं तो स्वर लता मंगेशकर का हो। उन्होंने अपनी जो जगह बनाई उसमें टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की साम्राज्ञी कहा तो फिल्म जगत ने उन्हे लता दीदी कहकर पुकारा। भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया। भारतीय फिल्म संगीत के सुनहरे दौर में लताजी के मुकेश मोहम्मद रफी मन्नाडे हेमंत कुमार किशोर कुमार के युगल गीत फिंजा में महकते रहे। कोरा कागज था ये मन मेरा, य़े किसने गीत छेड़ा, फूलों का तारो का ,सबका कहना है, आवाज देकर हमें तुम बुलाओ, आजा सनम मधुर चादनी में तुम, इक प्यार का नगमा है जैसे अनगिनत तराने लोगों को दशकों तक मंत्रमुग्ध करते रहे। शास्त्रीय गीतों में लताजी ने ऐसे स्वर साधे कि साज भी बोल उठे वाह लताजी । मेरे नैना सावन भादो, नैनों में कजरा छाए वो बसंती पवन पागल, मेरमोहे भूल गए सावंरिया, नैना बरसे रिम झिम झिम, मोहे पनघट में नंद लाल छेड़ गयो रे जैसे शास्त्रीयता मे ढले गीतों को उनके स्वर मिले।
लता मंगेशकर ने मदन मोहन , नौशाद , एसडी बर्मन कल्याणजी आनंदजी रवि हेमत कुमार से लेकर नए दौर में आर रहमान , आनंद मिलिंद नदीम श्रवण जैसे संगीतकारों के निर्देशन में अनगिनत मधुर गीत गाए हैं। उनके गीत भारत संगीत जगत की धरोहर है। लता जैसा कोई सदियो में पैदा होता है। लताजी के गीत देश की विरासत है।
हर संगीत कार का अपना अंदाज था। शकर जयकिशन का आर्केस्टा पापुलर था एसडी बर्मन के संगीत में लोक जीवन था तो मदन मोहन के संगीत में लता के संजीदगी से भरी गायकी ने फिल्म संगीत के दौर को स्वर्णिम बनाया। कल्याणजी आनंदजी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और आरडी बर्मन के संगीत में लता भारतीय फिल्म संगीत के लिए अनमोल धरोहर बने। उन्होंने भूपेन हजारिका के संगीत को अपनी आवाज से महकाया तो आनंद मिलिंद नदीम श्रवण का संगीत भी उनका आवाज पाकर खिल उठा। वो ही लता ही थी तो आपकी नजरों से समझा प्यार के काबिल मुझे जैसा संजीदा गीत गाया तो गुलाम मोहम्मद की ढोलक की थाप पर उनका ही स्वर महका था, सारी रात चलते चलते मुझे कोई मिल गया था। शकर जंयकिशन की धुन पर लता मंगेशकर ने ही गुनगुनाय़ा था अजीब दास्ता हैं ये कहां शुरू कहां खत्म । है मंजिले कौन सी तुम समझ सके न हम । वाकई लता मंगेशकर की गायकी अनमोल है।
फोटो- साभार गुगल
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